जगतों के सात क्रम |
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"शुरुवात में केवल शब्द था और शब्द भगवान् के साथ था और शब्द ही भगवान् था. सभी वस्तुएं उन्ही के द्वारा बनायी गयी थी; और जो कुछ भी बना था उनके बिना नहीं बना था." जगतों के सात क्रम हैं, सात ब्रहमांड जो बनाये गए हैं शब्द, संगीत, ध्वनि की शक्ति द्वारा. पहेला ब्रहमांड निरपेक्ष की अनिर्मित ज्योति में मग्न है. जगतों का दूसरा क्रम निरपेक्ष अंतरिक्ष की सभी दुनियाओं से मिल कर बना है. जगतों का तीसरा क्रम तारों से भरे अंतरिक्ष के सभी सूर्यों का जोड़ है. जगतों का चौथा क्रम सूर्य है जो हमें अपने नियमों और आयामों से प्रकाशित करता है. जगतों का पांचवा क्रम सौर्य मंडल के सभी ग्रहों द्वारा बना है. जगतों का छठा क्रम अपने सात आयामों और अनगिनत प्राणियों से भरे क्षेत्रों के साथ खुद पृथ्वी ही है. जगतों का सातवाँ क्रम उन सात सकेंद्रित चक्रों या नारकीय जगतों द्वारा बनाया गया है जो पृथ्वी की सतह के नीचे धातु लो में मग्न है. लोगोस द्वारा सात सुरों में स्थित संगीत, शब्द, ब्रह्माण्ड को संभाले हुए है. जगतों का पहेला क्रम, स्वर सा. जगतों का दूसरा क्रम, स्वर रे. जगतों का तीसरा क्रम, स्वर गा. जगतों का चौथा क्रम, स्वर मा. जगतों का पांचवा क्रम, स्वर पा. जगतों का छठा क्रम, स्वर धा. जगतों का सत्व क्रम, स्वर नि. इसके बाद, सभी कुछ स्वर सा के साथ निरपेक्ष के पास वापस पहुच जाता है. सात ब्रह्मांडों का अद्भुत अस्तित्व बिना संगीत के, बिना महान शब्द के, बिना स्वर के असंभव है. सा-रे-गा-मा-पा-धा-नी-सा. सा-नि-धा-पा-मा-गा-रे-सा. मौलिक शब्द के महान स्टारों के सात स्वर, सभी जगतों में गूंजते हैं, क्योंकि शुरुवात में केवल शब्द ही था. जगतों का पहेला क्रम केवल एक नियम द्वारा बुद्धिमता से नियंत्रित है, महान नियम द्वारा. जगतों का दूसरा क्रम तीन नियमों द्वारा नियंत्रित है. जगतों का तीसरा क्रम छः नियम द्वारा नियंत्रित है. जगतों का चौथा क्रम बारह नियमों द्वारा नियंत्रित है. जगतों का पांचवा क्रम २४ नियमों द्वारा नियंत्रित है. जगतों का छठा क्रम ४८ नियमों द्वारा नियंत्रित है. जगतों का सातवा क्रम ९६ नियमों द्वारा नियंत्रित है......... जब कोई शब्द के बारे में बात कर रहा है तब वह ध्वनि, संगीत, ताल, अग्नि और अग्नि के महावन और चोतावान की तीन मर्यादा की ही बात कर रहा है जो की ब्रह्माण्ड को टिकाये हुए है.
मिथ्या-औकल्टिस्ट और मिथ्या-इसोतेरिस्ट केवल सूक्ष्मब्रह्माण्ड और स्थूलब्रह्मांड के बारे में ही बात करते हैं; वे केवल दो जगतों की बात करतें हैं, जबकि असलियत में सात ब्रहामाद अस्तित्व में हैं, जगतों के सात क्रम जो शब्द, संगीत और पहेले क्षण की बीज और चमकदार आज्ञा द्वारा अनवरत हैं.
सभी सात ब्रहमांड निसंदेह ही एक जीवित बनावट हैं जो सांस लेते हैं महसूस करते हैं और जीते हैं. इसोटेरिक दृष्टिकोण के अनुसार, हम यह पुष्टि कर सकतें हैं की सभी उपरी विकास एक निचले विकास का परिणाम हैं. कोई भी इन पतन के उन्नति नहीं कर सकता. पहेले हमें पतनशील होना होगा और फिर उन्नत. यदि हम एक ब्रहमांड को जानना चाहतें हैं, पहेले हमें उसके संलग्न दो रहमान्दों को जानना होगा, एक जो उसके ऊपर है और एक जो उसके नीचे, क्योंकि वे दोनों उस ब्रहमांड की स्तिथि और जीवित तथ्यों का निर्णय करती हैं जिसे हम जानना और पढना चाहते हैं. उदाहरण: इस कल में जहाँ वैज्ञानिक अंतरिक्ष, अद्भुत पर विजय पाना चाहते हैं, वहाँ दुर्भाग्यवश अत्यंत अल्प के क्षेत्र में, परमाणुकजगत में प्रतिकूल उन्नति हो रही है. सात ब्रह्मांडों की रचना केवल पवित्र त्रिमूर्ति, कन्याओं और परियों के संयोग, संगीत और शब्द के माध्यम से ही संभव थी. तीन शक्तियाँ, ब्रह्मा-विष्णु-महेश दिव्या त्रियामाज़िकम्नो स्थापित करतें हैं. यह पवित्र जन्म देने वाला, पवित्र संहार करने वाला और पवित्र पालन-पोषण करने वाला; पवित्र भगवान्, पवित्र अटल और पवित्र अमर भी हैं. विद्युत् में यह तीन स्तम्भ हैं: सकारात्मक, नकारात्मक और निष्पक्ष. इन तीन स्तंभों के बिना उत्पत्ति असंभव है. नोस्टिक इसोटेरिक विज्ञान में, तीन स्वतंत्र शक्तियों के नाम निम्न हैं: सुर्प-ओथिओस, सुर्प-स्कीरोस, सुर्प-अथानोतोस; आगे बढ़ने वाला, पैदा करने वाला, सकारात्मक; संहार करने वाला, प्रतिरोधक; पोषण करने वाला; मुय्क्ति दिलाने वाला, निष्पक्ष. यह तीन शक्तियां उत्पत्ति के प्रकाश में तीन इरादे, तीन चेतनाएं, तीन इकाइयों के सरूर हैं. इन तीनो शक्तियों में हर एक शक्ति अपने अन्दर तीनों की सभी संभावनाएँ संभाले हुए है. लेकिन इनके संयोग के इंदु पर तीनो केवल अपना ही आदर्श स्पष्ट करती है: सकारात्मक, नकारात्मक और निष्पक्ष. इन तीनो शक्तियों को क्रिया में देखना काफी दिलचस्प होता है. वे अलग हो जातें हैं, एक दुसरे से विपरीत चलतें हैं और फी एक बार एकजुट हो जातें हैं नयी त्रिमूर्ति को उत्पन्न करने के लिए जो नए जगत और नयी संरचनाएं उत्पन्न करती हैं. निरपेक्ष में तीन शक्तियां एक लोगोस हैं, शब्द की सेना जीवन की महान इकाई में जो की स्वतंत्र है अपनी गतिविधियों में. पवित्र लौकिक सार्वजनिक त्रिआमाज़िकम्नो की सृजनशील विधि शब्द के कामुक विवाह द्वारा हुई थी क्योंकि शुरुवात में केवल शब्द था, और शब्द भगवान् के साथ था और शब्द ही भगवान् था. उसी की वजह से सब कुछ बना थो और ऐसा कुछ नहीं बना था जो उसके बिना बना था. हेप्तापरापर्शिनोख के पवित्र नियम( सात के नियम) के अनुसार, सोर्य मंडल के निर्माण के लिए प्रकृति में सात मंदिरों को स्थापित किया गया था. त्रिआमाज़िकाम्नो के पवित्र नियम( तीन के नियम) के अनुसार , एलोहीम ने खुद को हर मंदिर में तीन दलों में विभाजित किया अग्नि के लितुर के अनुसार गाने के लिए. प्रकृति, केओस, लौकिक माँ, महान गर्भ, को गर्भवतीअनने का कार्य सदा ही अत्यंत पवित्र तियोमेर्तमालोगोस, तीसरी शक्ति का है. तीन दलों ने खुद को हर एक मंदिर में में निम्न रूप में संगठित किया: पहिला, एक पुजारी. दूसरा एक पुजारिन. तीसरा एलोहीम एक निष्पक्ष दल. यदि हम एलोहीम को अर्धनारीश्वर के रूप में समझे तब यह स्पष्ट हो जाएगा की त्रिअमाज़िकम्नो के पवित्र नियम के अनुसार वे खुद को अपनी मर्ज़ी नर, मादा या निष्पक्ष रूप में ढाल सकतें हैं. पुजारी और पुजारिन वेदी के सामने मंदिर की भूमि पर रहेते थे, एलोहीम के अर्धनारीश्वर गायक मंडल. अग्नि के विधिशास्त्र गाये गए थे और शब्द के कामुक विवाह से कोतुहल की महान गर्भ गर्भवतीकी गयी थी और ब्रहांड का जन्म हुआ था. परियाँ शब्द की शक्ति के उतपन्न करती हैं. कंठ एक गर्भाशय है जहाँ शब्द विकसित होता है. हमें शब्द, सृजनशील कंठ में चेतना को जागरूक करना होगा ताकि वह भी एक दिन पहेले क्षण की बिज और चमकदार आज्ञा का उच्चारण कर सके. हमारे कंठ की चेतना निद्रावस्था में है, हम शब्द के साथ अचेत हैं; हमें शब्द के साथ पूरी तरह से जागरूक होना होगा. यह कहा गया है की मौन स्वर्ण है. हम कहेते हैं की अपराधिक मौन भी अस्तित्व रखता है. जिस क्षण में मौन रहना चाहिए उस क्षण में बोलना उतना ही बुरा है जितना बुरा मौन रहना है उस क्षण में जिसमें बोलना चाहिए. ऐसे भी समय होते हैं जिनमे बोलना एक अपराध है. लेकिन ऐसे भी क्षण हैं जिनमें मौन एक अपराध है. शब्द सुन्दर होते हैं लेकिन वह जो बोलता है और करता नहीं उसके शब्द नीरस होते हैं, ठीक उस फूल की तरह जो रंगों से भरा हो लेकिन खुशबूदार न हो. लेकिन वह जो बोलता है उसे क्रिया में ही लता है उसके शब्द सुन्दर और मधुर होते हैं रंग और खुशबू से भरे फूलों की तरह. यह आवश्यक है की शब्दों की यान्तरिक्ता को नह्स्त किया जाए. यह आवश्यक है की एक सचेत और आव्सरिक अंदाज़ में शुद्धता से बोला जाए. हमें अपने शब्दों में सचेत होना होगा. शब्दों में ज़िम्मेदारी है और शब्दों के साथ खेला उनका अपवित्रीकरण है. किसी के पास भी दूसरो को आंकने का कोई अधिकार नहीं है; अपने साथियों को अपशब्द कहेना निरर्थक है. दूसरों के जीवन के आरे में फुसफुसाना बेवकूफी है. अपशब्द, प्रतिशोध की किरण की तरह, आज या कल हमारे पास लौट कर आते हैं. निंदक शब्द, अपशब्द सदा उसके घाव पहुँचाने वाले पत्थरों की तरह लौट कर आते हैं जो उनका उच्चारण करता है. किताब "हेर्मेटिक ज्योतिषशास्त्र" से, सामाएल आउन वियोर.
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